पढ़ते हुए : गंदी बात @ क्षितिज रॉय

पटना पुस्तक मेला में क्षितिज

क्षितिज जब पटना आये थे इस बार के पुस्तक मेला में तो , सवाल-जवाब के क्रम में मैंने उनसे पूछा कि “साहित्य में जहाँ इतना उठा पटक है, खेमेबाज़ी और विचारधारा का टकराव है, उस जगह एक युवा रचनाकार का छपना कितना मुश्किल है ?"
 
आप जवाब जाने उससे पहले एक युवा रचनाकार का संघर्ष देखिए। क्षितिज की उपन्यास गंदी बात से दो साल पहले नीलोत्पल मृणाल की उपन्यास आई थी डार्क हॉर्स. किताब आने के महज़ हफ्ता भर में इसका दूसरा संस्करण छापना पड़ा , आज तक डार्क हॉर्स की पांच से अधिक संस्करण आ गये हैं. पिछले साल ही नीलोत्पल को डार्क हॉर्स के लिए साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

लेकिन नीलोत्पल की कहानी इतनी हैप्पी टाइप भी नहीं है . किताब लिखने के बाद महीनों तक वे प्रकाशनों के चक्कर काटते रहे, उन्हें सलाह मिलता की अभी और पढ़िए , थोड़ा पकिए तब लिखिए . डार्क हॉर्स की पांडुलिपि इस ऑफिस से उस ऑफिस होती रही. एक युवा के लिए अपने लिखे किताब की पांडुलिपि को लेकर इस प्रकाशन से उस प्रकाशन तक ठोकर खाना कितना ह्रदय विदारक है. जो युवा आँखों में अपने किताब छप जाने , अपनी बात कह पाने की ललक के साथ किताब लिखता है , जो शरीफ-शरीफ सा लग रहे साहित्य में जगह पाना चाहता है उस पर इतनी बंदिशे लाद दी जाती है कि युवक टूट सा जाता है , लेकिन तारीफ नीलोत्पल जैसे जुझारू युवा-लेखक का जो बने रहे अपने रास्ते पर और शब्दारम्भ प्रकाशन का खैरमकदम की उन्होंने डार्क हॉर्स को छापा. आज डार्क हॉर्स की पांच से अधिक संस्करण तो आये ही साथ ही किताब की यह सफलता की मुखर्जी नगर में इसके ज़ेरॉक्स कॉपी तक बिकी.

अब फिर से क्षितिज से किये सवाल पर, युवा रचनाकार का छपना कितना मुश्किल है ? मुझे अब लगता है कि मैं यह सवाल मुक्कमल तरीके से पूछ ही नहीं पाया। मुझे पूछना चाहिए था कि हिंदी साहित्य में युवा रचनाकार का छप पाना कितना मुश्किल है ? सवाल में सिर्फ हिंदी लगा देने भरा से सारे जवाब बदल जाते हैं ।
 

अंग्रेज़ी में साल भर पहले एक नॉवेल आती है 'Every one has a story' के नाम से। बिना किसी बड़े प्रकाशन से प्रकाशित हुए यह किताब देखते-देखते मार्केट में छा जाती है , पाठक पसंद करने लग जाते हैं । किताब के अप्रत्याशित सफलता से प्रभावित होकर अंग्रेजी के दो बड़े प्रकाशन वेस्टलैंड और पेंग्विन किताब के राइटर के पास बुक छापने का ऑफर लेटर भेजते हैं। किताब फिर से छपती है वेस्टलैंड प्रकाशन से और किताब की एक लाख से ज़्यादा प्रतियां बिक जाती है और बुक की राइटर एकदम से न्यू नॉवेल स्टार बन जाती है - AUTHOR SAVI SHARMA. सवी शर्मा वन बुक वंडर नहीं हैं , इंग्लिश में कई ऐसे युवा राइटर हैं जिनकी किताबें खूब बिकती हैं, और युवा पसंद भी करते हैं. रविन्द्र सिंह ( 35 वर्ष ) , दुर्जोय दत्ता ( 30 वर्ष ) , निकिता सिंह ( 25 वर्ष ) कुछ ऐसे नाम हैं जिनकी किताबें स्टेशन पर या फिर अमेज़न इंडिया के होम पेज पर दिख जाएंगी. फिर हिंदी के प्रकाशक नए लोगों को छापने में क्यों कतराते हैं ?

हिंदी और इंग्लिश प्रकाशन से बीच इतना बड़ा अंतर कैसे हैं ? अंग्रेजी का प्रकाशक क्यों राइटर को पकिये तब लिखिए वाली बात नहीं कहता ? कुछ लोग कहते हैं कि यह सब किताब का कोई स्टैंडर्ड नहीं होता. माना की इंग्लिश के ये राइटर क्लासिक्स या सीरियस टाइप नहीं लिख रहे हैं, इनकी किताबें बाज़ार बेस्ड हैं लेकिन ये किताबें पाठकों तक पहुँच तो रही हैं ये लेखक अपने नए पाठक तो तैयार कर रहे हैं जो स्टूडेंट इंजीनियरिंग या मेडिकल की तैयारी कर रहा है या फिर कोई किसी सफ़र में है तो टाइम पास के लिए ही सही कम से कम कुछ पढ़ तो रहा है रीडिंग कल्चर तो बन रहा है ,  लिटरेचर से एकदम से जुड़ाव ना रखने वाला कुछ तो पढ़ रहा और संभव है एकदिन इन राइटर को पढ़ते हुए क्लासिक लिटरेचर को पढ़े . 

पिछले साल आई हिंदी उपन्यास मुसाफिर कैफ़े पुस्तक के लेखक दिव्य प्रकाश दुबे कहते हैं कि उन्हें कई पाठकों के मेसेज आये की हिंदी में स्कूल में प्रेमचंद पढ़ा था उसके बाद आपको पढ़ रहा हूँ हिंदी में . इतना बड़ा गैप . जाहिर से बात है यह कि यह गैप , रीडिंग कल्चर न बन पाने के कारण बना है.

साल 2015 में हिन्द युग्म प्रकाशन से सत्य व्यास की उपन्यास  बनारस टॉकीज़ आई . महज कुछ महीने में  बनारस टॉकीज़ और सत्य व्यास हिंदी प्रकाशन के लिए न्यू सेंसेशन बन गये. आज उनके पास अपना बड़ा पाठक वर्ग है . बनारस टाल्कीस की बड़ी कामयाबी है कि इस उपन्यास पर फिल्म बनाने के लिए हिंदी फिल्म निर्देशक लेखक सत्य व्यास को अप्प्रोच कर रहे हैं. चेतन भगत के इंग्लिश के नावेल पर फ़िल्में बनी लेकिन नए हिंदी राइटर के नावेल पर फिल्म बने यह हिंदी के लिए सुखद है . 
 

 गंदी बात पढ़ते हुए कुल बात यही कि राजकमल प्रकाशन से युवा रचनाकार क्षितिज रॉय का प्रकाशित होना उम्मीद जगाता है कि पकिये तब लिखिए वाली बात अब टूटने लगी है. यंग ब्लड अपनी नई भाषा , अपनी नई शैली इजाद कर रहे हैं . उम्मीद है कि नए राइटर नए पाठक तैयार करें . जो हिंदी के नये लोगों सत्य व्यास , दिव्य प्रकाश दुबे , क्षितिज रॉय को पढ़ते हुए उदय प्रकाश , मन्नू भंडारी , राजेंद्र यादव , धर्मवीर भारती , परसाई को पढ़ पाए . 

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