Posts

मर गया देश, अरे जीवित रह गये तुम

        ‘ मैं ’ बंद है रात के अँधेरे कमरे में , बेचैन और डरा हुआ. अचानक पश्चिम के दरवाजे पर किसी की दस्तक होती है, ‘ मैं ’ डरता हुआ किवाड़ खोलता है, लेकिन सामने कोई नहीं होता. डर और बेचैनी में वह गैलरी में जाकर देखता है, वहां से ‘ मैं ’ को वाइट हाउस दिखता है, सबसे पुराने लोकतन्त्र में एक अलोकतांत्रिक व्यक्ति का शपथ ग्रहण हो रही है. ‘ मैं ’ वापस अपने अँधेरे कमरे में चला आता है, वह नींद की गोलियां खोजता है, आज उसे इसके बिना नींद नहीं आएगी. लेकिन इस बार पूरब के दरवाजे पर किसी के संकाल पीटने की आवाज आती है. मैं द्वार खोलता है, लेकिन फिर सामने कोई नहीं होता, मैं फिर गैलरी में जाता है, देखता है की किसी प्राचीन से शहर में एक आदमी हजारों के हुजूम के साथ सड़कों पर चला जा रहा है. किनारों पर खड़े लोग उसका नाम पागलों की तरह चिल्ला रहे हैं. उस शोर की आवाज से ‘ मैं ’ का कान फटा जा रहा  है, उसकी कानों से खून निकल आता है. ‘ मैं ’ वापस अपने कमरें में आ किवाड़ बंद कर लेता है. अँधेरे में ही ‘ मैं ’ अपने कान का खून साफ़ कर रहा होता है कि फिर उत्तर के दरवाजे के पीटने की आवाज आती है, इस बार चिढ़ में ‘ मैं ’ दरव

वरना कोई भी ’गढ़’ यूँ ही ’लाल’ नहीं होता

Image
      करीब साल भर पहले बिमल रॉय की फिल्म देखी थी दो बीघा जमीन. 60 के दशक में बनी इस फिल्म के दृश्य और संवाद के कट आउट निकाल के कमरें की दीवार पर लगायें तो पूरी दिवार भर जाएगी. लेकिन फिल्म का एक खास दृश्य बेहद बेचैन कर देने वाला लगा. बलराज साहनी अभिनित इस फिल्म में एक दृश्य ऐसा है जहाँ किसान से मजदूर बना पिता जब बीमार हो जाता है, तो बीमार बाप के इलाज़ के लिए बेटा चोरी के पैसा से दवाई खरीदकर ले जाता है. यह जान बाप गुस्से में बेटे को पिटते हुए कहता है कि “किसान का बेटा होकर चोरी करता है तेरी मां सुनेगी तो शर्म के मारे जान दे देगी.” आज देश की राजनीति यह है की लाखों करोड़ों का अनाम चंदा लेकर, लाखों रूपए से बने मंच पर एक आदमी आलीशान हेलिकॉप्टर से आता है और चीखता हुआ कहता है कि मैं किसान का बेटा हूँ, मजदूर का बेटा हूँ आप मुझे वोट दो और जनता उसका नाम पागलों की तरह चिल्लाती है. अगर कोई पूछे बैठे कि यह लाखों का चंदा कौन दिया है तो उसके माथे पर एंटी नेशनल लिख दिया जाता है. काश चोरी से पैसे कमाना बलराज साहनी की को आ जाता तो उनका दो बीघा ज़मीन नीलाम न होता. दिल्ली में तमिल नाडू के किसान महीने भर से प

पढ़ते हुए : गंदी बात @ क्षितिज रॉय

Image
पटना पुस्तक मेला में क्षितिज क्षितिज जब पटना आये थे इस बार के पुस्तक मेला में तो , सवाल-जवाब के क्रम में मैंने उनसे पूछा कि “साहित्य में जहाँ इतना उठा पटक है, खेमेबाज़ी और विचारधारा का टकराव है, उस जगह एक युवा रचनाकार का छपना कितना मुश्किल है ?"   आप जवाब जाने उससे पहले एक युवा रचनाकार का संघर्ष देखिए। क्षितिज की उपन्यास गंदी बात से दो साल पहले नीलोत्पल मृणाल की उपन्यास आई थी डार्क हॉर्स . किताब आने के महज़ हफ्ता भर में इसका दूसरा संस्करण छापना पड़ा , आज तक डार्क हॉर्स की पांच से अधिक संस्करण आ गये हैं. पिछले साल ही नीलोत्पल को डार्क हॉर्स के लिए साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार से सम्मानित किया गया. लेकिन नीलोत्पल की कहानी इतनी हैप्पी टाइप भी नहीं है . किताब लिखने के बाद महीनों तक वे प्रकाशनों के चक्कर काटते रहे, उन्हें सलाह मिलता की अभी और पढ़िए , थोड़ा पकिए तब लिखिए . डार्क हॉर्स की पांडुलिपि इस ऑफिस से उस ऑफिस होती रही. एक युवा के लिए अपने लिखे किताब की पांडुलिपि को लेकर इस प्रकाशन से उस प्रकाशन तक ठोकर खाना कितना ह्रदय विदारक है. जो युवा आँखों में अपने किताब छप जाने , अपनी बात कह पा

Book Review : 'The 365 days'

Image
           Title - The 365 days          Writer - Nikhil ramtake          Paperback:  192 pages          Publisher:  Write India Publishers          Language:  English          ISBN-10:  8193298845          ISBN-13:  978-8193298848 ‘The 365 days’  is debut novel of Nikhil Ramtake . Nikhil dedicates his debut novel to the late Rainabai. Novel is about  an atheist fisherman of  Kerela named  Shijukutty . Like many Indians he migrates to Dubai in expectation of good job with high salary. In Dubai , Nikhil tells a very heart touching and untold story of Indian migrants. The 365 days reveal black side of the lime light of Dubai. STORY Book opens with the new year eve at Thiruvanatpuram airport . Shijukutty was going to gulf in search of his destiny. Shijukutty leaves his wife Dhanya and son Suraj at vizhinjam , kerala. In Vizhinjam he used to do fishing for his livelihood but he was not earning sufficient money. To earn more he planned to migrate Gulf. He brrowed loan on his house to arra

पुस्तक वार्ता - 'रूस की क्रांति'

Image
2017 रूस की क्रांति का शताब्दी वर्ष है . सौ साल पहले हुए इस क्रांति की चमक का  मानव विकास की पट्टी पर आज तक धुंधली नहीं हुई है न आने वाले कल में होगी . वर्षों से जारशाही की पीढ़ा झेल रहे रूस में 25 अक्तूबर 1917 को ऐसी लकीर खिंची गयी जो आज तक कायम है . जिस समाजवाद को यूटोपियन सोसाइटी माना जा रहा था उस समाजवाद को रूस की क्रांति ने जमीन पर स्थापित किया . इस महान क्रांति का प्रभाव विश्व के चिंतक , दार्शनिक , वैज्ञानिक , लेखकों  पर पड़ा . क्रांति से प्रभावित भारत के लोग इस क्रांति का स्वागत श्रद्धाभाव से किए . रामवृक्ष बेनीपुरी रूस की क्रांति से बेहद प्रभावित , क्रांति के प्रभाव में ही उन्होंने 1931 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना किये. इसी प्रभाव में 1942 से 1945 के बीच हजारीबाग जेल में रखते हुए रूस की क्रांति किताब लिखी . जो लियोन त्रात्स्की की History Of Russian Revolution  पर आधारित हैं यह किताब शुरू होती है प्रथम विश्व युद्ध के रूस से जब किसानों को फौज में भर्ती किया जा रहा होता है और मोर्चे पर लड़ रहे सैनिक युद्ध से ऊब चुके रहते हैं. फरवरी क्रांति की जमीन तैयार हो चुकी रहती

जिनके मुँह में कौर माँस का उनको मगही पान

Image
देखो हत्यारों को मिलता राजपाट सम्मान जिनके मुँह में कौर माँस का उनको मगही पान प्राइवेट बन्दूकों में अब है सरकारी गोली गली-गली फगुआ गाती है हत्यारों की टोली देखो घेरा बांध खड़े हैं ज़मींदार की गुण्डे उनके कन्धे हाथ धरे नेता बनिया मुँछ्मुण्डे गाँव-गाँव दौड़ाते घोड़े उड़ा रहे हैं धूर नक्सल कह-कह काटे जाते संग्रामी मज़दूर दिन-दोपहर चलती है गोली रात कहीं पर धावा धधक रहा है प्रान्त समूचा ज्यों कुम्हार का आँवा हत्य हत्या केवल हत्या-- हत्या का ही राज अघा गए जो माँस चबाते फेंक रहे हैं गाज प्रजातन्त्र का महामहोत्सव छप्पन विध पकवान जिनके मुँह में कौर माँस का उनको मगही पान कवि अरुण कमल जब यह कविता लिख रहे होंगे तो निश्चित ही उनके मन में अस्सी , नब्बें के दशक की बिहार की पीड़ा होगी. जब जमींदार का आतंक होता. जमींदार के खेते में बेगार काम करना पड़ता. खेतों पर जमींदार का कब्ज़ा होता, जब जमींदार की बात ना मानाने पर उनके लोगों द्वारा पिटा जाता , यहाँ तक कि पिटते-पिटते मार देने तक की घटना सामान्य होती. लेकिन इसके विरोध में जब किसान मजदूर एकजुट होकर अपनी लड़ाई शुरू किये तो जमींदार द्वारा उन्हें खत्म करने की क

हाल-ए-पटना पुस्तक मेला 2017

Image
पटना के गांधी मैदान में 4 फरवरी को शुरू होने वाला 23 वां पटना पुस्तक मेला 14 फरवरी को समाप्त हो गया। ग्यारह दिन तक चलने वाले इस पुस्तक मेला में दर्जनों किताबों का लोकार्पण हुआ , कई काव्य गोष्ठियों , पुस्तक अंश पाठ का आयोजन हुआ । साथ ही विभिन्न सामाजिक पहलुओं पर परिचर्चा भी आयोजित हुई । पटना पुस्तक मेला यूँ तो हर वर्ष नवंबर-दिसंबर के महीने में आयोजित किया जाता है लेकिन 350 वें प्रकाश वर्ष के कारण दो महीने विलम्ब से शुरू हुआ। 4 फरवरी को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाली इस पुस्तक मेला उद्घाटन किया । साथ ही पुस्तक मेला को राष्ट्रीय स्तर से अंतरराष्ट्रीय सलाह दी । क्या क्या हुआ ? सी आर डी द्वारा आयोजित पुस्तक मेले का इस वर्ष का थीम कुशल युवा सफल बिहार रखा गया । युवा को कुशल बनाने के उद्देश्य से ही मेला में कार्यशाला भी रखा गया । कार्यशाला में क्लास 12 तक के बच्चों को कविता लेखन , कहानी लेखन , पेटिंग करना बताया गया । हिंदी फिल्म गीतकार राजशेखर ने बच्चों की कविताएं सुनी , कविताओं को और बेहतर बनाने की बात बताई साथ ही अपनी कविता सुनाई , फिल्म में गीत लिखने के अप