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Showing posts from November, 2015

शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है... जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है

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" शोहरत की बुलंदी भी पल  भर का तमाशा है जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है ।" ब शीर बद्र का यह शे'र हमेशा से चरितार्थ होते आया है । कभी हमारे जीवन में तो कभी आपके जीवन में । यह  शे'र किसी सार्वभौमिक कथन की तरह सत्य है ,जिसे काटा नही जा सकता है । शोहरत और सफलता किसी की ग़ुलाम नही होती , यह अपना मालिक ख़ुद चुनती है  । शोहरत कभी स्थिर नही रहती , यह कभी किसी के पास कम समय तक रहती है तो कभी अधिक समय तक , पर बदलती जरूर है । क्योंकि बदलते रहने से ही इसती महत्ता बरकरार रहती है । अगर यह किसी व्यक्ति की गुलाम हो जाए तो इसे पाने की चाह दूसरों में समाप्त हो जाएगी, और जब चाह समाप्त हो जाएगी तो महत्ता भी समाप्त हो जाएगी । इसलिए बदलते रहना इसकी फितरत है और जरूरत भी । मैं यह बात इसलिए कह रहा हूँ क्यों की वर्तमान भारतीय राजनीति में भारतीय जनता पार्टी को हराना लगभग ना मुमकिन हो गया था । 2014 में पार्टी को लोकसभा में 283 सीट आई थी और कांग्रेस महज 44 पर सिमट गयी थी। और इस जीत के हीरो रहे थे तब के पार्टी के प्रधानमंत्री के उम्मीदवार अब के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी । पार

इस मशान पर मुर्दे जलाए जाते नही बल्कि यहां इसांन जीवित होते हैं

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इस मशान पर मुर्दे   जलाए जाते नही बल्कि यहां इसांन जीवित होते हैं   अ भी अभी फ़िल्म   ' मसान '  देखा।  अनुराग कश्यप   की टीम से निकली एक और बेहतरीन फ़िल्म। फ़िल्म इस साल   24  जुलाई को रिलीज   हुई थी पर दुर्भाग्यवश अब देख पाया हूँ। एक तो ऐसी फ़िल्म छोटे शहरों में रिलीज नहीं होती दूसरी इन फ़िल्मों को इंटरनेट पे आने में टाइम लग जाता है ।   हिंदी सिनेमा ख़ास कर के कमर्शियल सिनेमा  ( वही फिल्म में जो घटिया होने के बावजूद   100  करोड़ से ज्यादा काम लेती हैं और जिनका मूल मकसद पैसा कमाना होता है  )  में प्यार को पैसा कमाने का जरिया माना जाता है । प्यार ,  इमोशनल   ,  लाइम - लाइट   ,  चकाचौंध , बिना सरपर के गाने का कॉकटेल बना परोस देता है हम दर्शकों के सामने और हम भी बिना कुछ ज़्यादा सोचे समझे दौड़ पड़ते हैं फ़िल्म देखने। बड़े प्रोडक्शन हाऊस और बड़े स्टार के नाम पर कमजोर फिल्में भी हिट हो जाती हैं और अच्छे कहानी वाली शानदार फिल्मों को सिनेमाघर नही मिल पाता है और असफल हो जाती हैं । यह हिंदी सिनेमा या किसी भी सिनेमा के लिए अच्छी बात नही है । पर पिछले कुछ वर्षों में यह परिपाटी टूटती नज़र आ