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लघु प्रेम कथा (लप्रेक) | मार्क्स और प्रेम

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लघु प्रेम कथा (लप्रेक)             मार्क्स और प्रेम ईश्वर में विश्वास नही था फिर भी , रोज सुबह ही मंदिर पहुँच जाता वह   ।   इंतजार करता मंदिर की सिढ़ियों पर उसके आने का , आते ही चमक आ जाती उसके चेहरे पर , फिर साथ - साथ चढ़ते दोनों सिढ़ियाँ ।   आंखें मूंद ,   हाथ जोड़ पूरे भक्ति भाव से करती प्रार्थना मंदिर में स्थापित देवता से । और वह मंदिर के एक कोने में खड़ा हो , अपलक निहारता उस इंसान को जिसमें समाहित है उसकी आस्था । अभी उसके पॉकेट में हाथ डालो तो निकल आंएगे मार्क्स के दो - चार विचार । भले ही उसने चाट रखें हो मार्क्सवाद के पन्ने - पन्ने को पर वह भी नही जानता कि किस विचारधारा ने ले रखा है उसे इस वक्त आगोश में  ।                                                           दैनिक भास्कर (पटना संस्करण) में 06-04-2015 को प्रकाशित                                                                                                                                                  

लघु प्रेम कथा (लप्रेक) | मारे गए गुलफाम

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लघु प्रेम कथा (लप्रेक)                                मारे गए गुलफाम बैलों को हांकता हुआ हिरामन अपनी तीसरी कसम खा रहा है की कम्पनी की औरत को फिर कभी अपनी गाड़ी में नही बैठाएंगा । और गुनगुनाता हुआ घर की तरफ निकल पड़ता है ‘ अजी हाँ , मारे गए गुलफाम ... . ’ । कहानी एक बार फिर समाप्त हो जाती है और आंखे मूंद समर फिर बेतरतीब तरीके से पड़ जाता है बेड पर । पिछले हफ्ते की ही बात है , छोटी सी बात को लेकर झगड़ा हो गया था उसके साथ । झगड़ा इस कदर बढ़ गया की उसने ब्रेकअप कर लिया था समर के साथ । इसने भी तैश में आकर निकाल दी थी सारी भड़ास उसके सामने ही । कह दिया था कि फिर नही देखेगा सूरत कभी उसकी । कहने को तो कह दिया पर वह भी जानता था कि उसे भूलाना उसके लिए संभव नही , पर क्या करें खा चुका है कसम । तब से मायूस सा पड़ा ये पढ़ता रहता है एक ही कहानी ‘ मारे गए गुलफाम उर्फ तीसरी कसम ’ । बीसियों बार पड़ चुका है एक ही कहनी , हर बार कहानी के अंत होते ही बंधता जाता है अपने ही जुबां के बंधन में । पर अब और नही , निकलना होगा उसे अपने मायूसी से। जाकर मना लेगा उसे , मांग लेगा अपने गलती की माफी । निकल पड़त