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मर गया देश, अरे जीवित रह गये तुम

        ‘ मैं ’ बंद है रात के अँधेरे कमरे में , बेचैन और डरा हुआ. अचानक पश्चिम के दरवाजे पर किसी की दस्तक होती है, ‘ मैं ’ डरता हुआ किवाड़ खोलता है, लेकिन सामने कोई नहीं होता. डर और बेचैनी में वह गैलरी में जाकर देखता है, वहां से ‘ मैं ’ को वाइट हाउस दिखता है, सबसे पुराने लोकतन्त्र में एक अलोकतांत्रिक व्यक्ति का शपथ ग्रहण हो रही है. ‘ मैं ’ वापस अपने अँधेरे कमरे में चला आता है, वह नींद की गोलियां खोजता है, आज उसे इसके बिना नींद नहीं आएगी. लेकिन इस बार पूरब के दरवाजे पर किसी के संकाल पीटने की आवाज आती है. मैं द्वार खोलता है, लेकिन फिर सामने कोई नहीं होता, मैं फिर गैलरी में जाता है, देखता है की किसी प्राचीन से शहर में एक आदमी हजारों के हुजूम के साथ सड़कों पर चला जा रहा है. किनारों पर खड़े लोग उसका नाम पागलों की तरह चिल्ला रहे हैं. उस शोर की आवाज से ‘ मैं ’ का कान फटा जा रहा  है, उसकी कानों से खून निकल आता है. ‘ मैं ’ वापस अपने कमरें में आ किवाड़ बंद कर लेता है. अँधेरे में ही ‘ मैं ’ अपने कान का खून साफ़ कर रहा होता है कि फिर उत्तर के दरवाजे के पीटने की आवाज आती है, इस बार चिढ़ में ‘ मैं ’ दरव