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वरना कोई भी ’गढ़’ यूँ ही ’लाल’ नहीं होता

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      करीब साल भर पहले बिमल रॉय की फिल्म देखी थी दो बीघा जमीन. 60 के दशक में बनी इस फिल्म के दृश्य और संवाद के कट आउट निकाल के कमरें की दीवार पर लगायें तो पूरी दिवार भर जाएगी. लेकिन फिल्म का एक खास दृश्य बेहद बेचैन कर देने वाला लगा. बलराज साहनी अभिनित इस फिल्म में एक दृश्य ऐसा है जहाँ किसान से मजदूर बना पिता जब बीमार हो जाता है, तो बीमार बाप के इलाज़ के लिए बेटा चोरी के पैसा से दवाई खरीदकर ले जाता है. यह जान बाप गुस्से में बेटे को पिटते हुए कहता है कि “किसान का बेटा होकर चोरी करता है तेरी मां सुनेगी तो शर्म के मारे जान दे देगी.” आज देश की राजनीति यह है की लाखों करोड़ों का अनाम चंदा लेकर, लाखों रूपए से बने मंच पर एक आदमी आलीशान हेलिकॉप्टर से आता है और चीखता हुआ कहता है कि मैं किसान का बेटा हूँ, मजदूर का बेटा हूँ आप मुझे वोट दो और जनता उसका नाम पागलों की तरह चिल्लाती है. अगर कोई पूछे बैठे कि यह लाखों का चंदा कौन दिया है तो उसके माथे पर एंटी नेशनल लिख दिया जाता है. काश चोरी से पैसे कमाना बलराज साहनी की को आ जाता तो उनका दो बीघा ज़मीन नीलाम न होता. दिल्ली में तमिल नाडू के किसान महीने भर से प