पटना पुस्तक मेला | फर्स्ट डे

कल का पुस्तक मेला मेरे लिया काफी यादगार रहा . क्यों कि मैं पहली बार किसी पुस्तक मेला में शरीक हो रहा था . संयोग से पुस्तक मेले में हिंदी फिल्म गीतकार राज शेखर भी बच्चों के कविता कार्यशाला में आये हुए थे . सो उनसे भी मुलकात हो गयी . बड़े दिनों से उनके तनु वेड्स मनु और तनु वेड्स मनु रिटर्न्स के सारे शानदार गाने सुनता आ रहा हूँ . राज शेखर हिंदी फिल्मों के जितने बड़े गीतकार हैं उतनी ही दखल हिंदी साहित्य में भी रखते हैं और उनका मानना भी है की फिल्म गीत साहित्य से इतर है भी नहीं.

राज शेखर बताते हैं कि कविता लिखने का शौक उन्हें चौथी क्लास से ही लगी. 11th और 12th में जब वे मधेपुरा से पटना पढ़ने आये तो उन्हें मैथ्स से बड़ा डर लगता . मैथ्स का क्लास उन्हें बोझिल मन से पढ़ना पड़ता . सो उनका ज्यादा वक़्त पटना कॉलेज और पटना यूनिवर्सिटी के सामने वाली किताबों के दुकानों में किताब उलटे गुज़रता . ग्रेजुएशन में दिल्ली यूनिवर्सिटी चले गये हिंदी साहित्य पढने . बाद में वे निर्देशक आनंद एल राय के सहायक हो गये . आनंद एल राय जब तनु वेड्स मनु बना रहे थे तो राज शेखर से उन्होंने कहा कि तुम कवितायेँ लिखते हो तो फिल्म के लिए गाने भी लिख दो . इस तरह हिंदी सिनेमा में हुआ गीतकार राज शेखर का प्रवेश . राज शेखर आगे बताते हैं कि उन्हें कभी फिल्मों में या मुंबई में ज्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ा . काम उन्हें मिलते गये , दोस्त का साथ मिलता रहा . आज राज शेखर हिंदी फिल्मों के बड़े गीतकार हैं , समय समय पर वो मजनूं का टीला नाम के बैंड से कई शहरों में अपनी कवितायों का सुनाते आ रहे हैं और मजनूं का टीला का लोकप्रिय भी हो रहा है .
कार्यशाला में आये बच्चों से मिलकर उनकी कविता सुनकर राज शेखर काफी प्रभावित हुए . राज शेखर कहते हैं कि वे मुंबई में भी कई बड़े स्कूलों में गये हैं लेकिन यहाँ( पटना )  के उन्हें ज्यादा मज़ा आया . राज शेखर जब पत्रकारों को इंटरव्यू दे रहे थे तो मैंने भी कुछ सवाल उनसे पूछे .

सवाल – सर आज के समय में जब इतनी कवितायेँ लिखी जा रही हैं लेकिन हमारा परम्परागत धुन , लोकगीत नष्ट हो रहा है इसपे आप का क्या राय है ?
राज शेखर – सही बात है . हमारी अपनी धुनें नष्ट हो रही है. उनकों सहेज कर रखने की जरुरत है. लेकिन समस्या यह है कि लोकगीत के धुन को सहेजने के बजाए आज कल उसकों बदलाव करके लाउड और रीमिक्स कर के लाया जा रहा है .
सवाल – बिहार में पेरेंट्स जो मानसिकता बना लिए हैं कि जो बच्चे को मेडिकल इंजिनियर या फिर आईएअस , आईपीएस बनाना है, कविता या साहित्य के प्रति उदासीनता है , इसपे आपका क्या सोचना है .
राज शेखर – क्यों की मैं भी बिहार से हूँ और मेरे पिता किसान हैं इसलिए इस बात को बेशक समझता हूँ की पेरेंट्स की यह मानसिकता बनी हुई है. जब मैंने बोला की कविता लिखना चाहता हूँ , तो लोगों का कहना था की इसमें क्या करियर है, बर्बाद हो जाओगे, वापस खेती करनी होगी. आज जो कोई भी बंगाल का आदमी मुंबई आता है चाहे वो एक्टिंग का हो , या कैमरा या फिर संगीत का. वहां के लोग नजरुल से , रविन्द्र संगीत से वाकिफ होते हैं . आज के बच्चे बाइनरी में बातचीत करते हैं कल को यही बच्चे पेरेंट्स से ठीक से व्यवहार नहीं करते क्यों की इन बच्चों ने तो साहित्य पढ़ा ही नहीं , साहित्य अपने जड़ से , मिटटी से जुड़ने का माध्यम होता है .
सवाल – सर आनंद एल राय की अगली फिल्म जो शाह रुख खान के साथ है उसमे गाने आप ही लिख रहे हैं ?
राज शेखर – अभी कुछ तय नहीं हुआ है .

दृश्य 2

पुस्तक मेले में आज रविवार के दिन भीड़ काफी दिखी. गुनाहों का देवता काफी लोगों के हाथों में दिखी . लेकिन पुस्तक मेले में किताबों के आसमान छुते कीमत ने हाथ को बांधे रखा. साहित्य पढने वालों की संख्या जैसे जैसे कम हो रही है किताबों के दाम भी बढ़ रह हैं. इसलिए कल प्रगति प्रकशन, मास्को को काफी याद किया . प्रगति प्रकाशन सोवियत संघ की प्रकाशन थी को एकदम नगण्य मूल्य पर किताबें उपलब्ध कराती थी . सोवियत संघ के पतन के बाद वो भी बंद हो गयी . रूस के साथ साथ विश्व के साहित्य को हिंदी में में उपलब्ध कराने में प्रगति प्रकाशन का बड़ा योगदान रहा है.

दृश्य 3


कल शाम में कवि सम्मलेन का भी आयोजन था जिसमे करीब दस कवियों में अपनी कविता सुनाई . कवि सम्मलेन की अध्यक्षता की चर्चित कवि आलोक धन्वा ने . इस कवि सम्मलेन में गीतकार राजशेखर ने भी अपनी कवितायें सुनाई .

प्रेम , बारिश और इंकिलाब

पता है मुझे
कविता से
कमसकम मेरी कविता से
न निज़ाम बदलता है
न प्रेमिका मानती है
और न ही बादल आते हैं
बहेलिया नहीं बदलता अपना मन
कुल्हाड़े लिए हाथ नहीं रुकते
कोई इंकिलाब कहाँ आ पाताहै कवितायों से
फिर भी
खुद को जिंदा रखने के लिए
जिंदा दिखने के लिए
लिखता हूँ कुछ
क्या पता
अगर जिंदा रह गया तो
प्रेम , बारिश और इंकिलाब
सब आ जाये किसी दिन


इसके अलवा कवि शहंशाह आलम , मुसाफिर बैठा , प्रत्युष चन्द्र मिश्रा , राज किशोर राजन , राकेश रंजन में भी अपनी कविता सुनाई . कवि सम्मलेन की समाप्ति अलोक धन्वा में अपनी मशहूर कविता भागी हुई लड़की के अंश को पढ़ा –

उसे मिटाओगे
एक भागी हुई लड़की को मिटाओगे
उसके ही घर की हवा से
उसे वहां से भी मिटाओगे
उसका जो बचपन है तुम्हारे भीतर
वहां से भी
मैं जानता हूं
कुलीनता की हिंसा !

लेकिन उसके भागने की बात
याद से नहीं जाएगी
पुरानी पवनचिक्कयों की तरह

वह कोई पहली लड़की नहीं है
जो भागी है
और न वह अन्तिम लड़की होगी
अभी और भी लड़के होंगे
और भी लड़कियां होंगी
जो भागेंगे मार्च के महीने में

लड़की भागती है
जैसे फूलों गुम होती हुई
तारों में गुम होती हुई
तैराकी की पोशाक में दौड़ती हुई
खचाखच भरे जगरमगर स्टेडियम में
अगर एक लड़की भागती है
तो यह हमेशा जरूरी नहीं है
कि कोई लड़का भी भागा होगा

कई दूसरे जीवन प्रसंग हैं
जिनके साथ वह जा सकती है
कुछ भी कर सकती है
महज जन्म देना ही स्त्री होना नहीं है

तुम्हारे उस टैंक जैसे बंद और मजबूत
घर से बाहर
लड़कियां काफी बदल चुकी हैं
मैं तुम्हें यह इजाजत नहीं दूंगा
कि तुम उसकी सम्भावना की भी तस्करी करो

वह कहीं भी हो सकती है
गिर सकती है
बिखर सकती है
लेकिन वह खुद शामिल होगी सब में
गलतियां भी खुद ही करेगी
सब कुछ देखेगी शुरू से अंत तक
अपना अंत भी देखती हुई जाएगी
किसी दूसरे की मृत्यु नहीं मरेगी



A photo posted by Sudhakar Ravi (@sudhakar.ravi) on

राज शेखर का कविता पाठ - http://bit.ly/Rajshekhar

कवि सम्मलेन का वीडियो - http://bit.ly/KaviSammelan

पुस्तक मेले के तस्वीरें - http://bit.ly/PatnaPustakMela

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