जिनके मुँह में कौर माँस का उनको मगही पान
देखो हत्यारों को मिलता राजपाट सम्मान
जिनके मुँह में कौर माँस का उनको मगही पान
प्राइवेट बन्दूकों में अब है सरकारी गोली
गली-गली फगुआ गाती है हत्यारों की टोली
देखो घेरा बांध खड़े हैं ज़मींदार की गुण्डे
उनके कन्धे हाथ धरे नेता बनिया मुँछ्मुण्डे
गाँव-गाँव दौड़ाते घोड़े उड़ा रहे हैं धूर
नक्सल कह-कह काटे जाते संग्रामी मज़दूर
दिन-दोपहर चलती है गोली रात कहीं पर धावा
धधक रहा है प्रान्त समूचा ज्यों कुम्हार का आँवा
हत्य हत्या केवल हत्या-- हत्या का ही राज
अघा गए जो माँस चबाते फेंक रहे हैं गाज
प्रजातन्त्र का महामहोत्सव छप्पन विध पकवान
जिनके मुँह में कौर माँस का उनको मगही पान
जिनके मुँह में कौर माँस का उनको मगही पान
प्राइवेट बन्दूकों में अब है सरकारी गोली
गली-गली फगुआ गाती है हत्यारों की टोली
देखो घेरा बांध खड़े हैं ज़मींदार की गुण्डे
उनके कन्धे हाथ धरे नेता बनिया मुँछ्मुण्डे
गाँव-गाँव दौड़ाते घोड़े उड़ा रहे हैं धूर
नक्सल कह-कह काटे जाते संग्रामी मज़दूर
दिन-दोपहर चलती है गोली रात कहीं पर धावा
धधक रहा है प्रान्त समूचा ज्यों कुम्हार का आँवा
हत्य हत्या केवल हत्या-- हत्या का ही राज
अघा गए जो माँस चबाते फेंक रहे हैं गाज
प्रजातन्त्र का महामहोत्सव छप्पन विध पकवान
जिनके मुँह में कौर माँस का उनको मगही पान
कवि अरुण कमल जब यह कविता लिख रहे होंगे तो निश्चित ही उनके मन में अस्सी , नब्बें के दशक की बिहार की पीड़ा होगी. जब जमींदार का आतंक होता. जमींदार के खेते में बेगार काम करना पड़ता. खेतों पर जमींदार का कब्ज़ा होता, जब जमींदार की बात ना मानाने पर उनके लोगों द्वारा पिटा जाता , यहाँ तक कि पिटते-पिटते मार देने तक की घटना सामान्य होती. लेकिन इसके विरोध में जब किसान मजदूर एकजुट होकर अपनी लड़ाई शुरू किये तो जमींदार द्वारा उन्हें खत्म करने की कोशिश की गयी . लेकिन आज भी जमींदार सामंत सरकार नेता पुलिस के गठजोड़ को कवि की कलम वर्षों बाद तक बयां करती है एकदम चट्टान की तरह .
अब दूसरा दृश्य है रामजस कॉलेज , दिल्ली यूनिवर्सिटी की . कल्चर ऑफ़ प्रोटेस्ट के विषय पर आयोजित सेमीनार को एबीवीपी के लोग इसे रद्द करा देते हैं यह कह कर कि इस सेमीनार में राष्ट्रद्रोह का आरोप झेल रहे उमर खालिद को क्यों बुलाया गया. लेकिन सेमीनार के पक्ष वाला छात्र समूह लेफ्ट छात्र संगठन विरोध प्रदर्शन करते हैं, इसी विरोध प्रदर्शन में एबीवीपी के लोग पत्थर चलाते हैं, एबीवीपी के लोगों द्वारा प्रदर्शन कर रहे छात्रों को पिटा जाता है , इस पुरे घटना को पहले तो दिल्ली पुलिस मूक दर्शक बन कर देखती है बाद में एबीवीपी के बचा हुआ काम दिल्ली पुलिस करने लग जाती है , प्रदर्शन कर रहे छात्रों को पिटती है , उन्हें पुलिस वैन में उठा के ले जाती है . इस पुरे घटना में सबसे शर्मनाक काम होता है एबीवीपी के लोगों द्वारा रामजस कॉलेज के इंग्लिश के प्रोफेसर का बुरी तरह पिटा जाना.
आप सोच रहे होंगे की मैंने बिहार उस सामंती दौर की ज़िक्र क्यों किया. कारण है की एबीवीपी के गुंडों द्वारा पिटा जाना बहुत से लोगों को फासीवादी लगती है लेकिन मुझे यह पूरी तरह सामंती सोच की घटना लगती है. जिस तरह इस पुरे घटना में पुलिस , सरकार इन गुंडों की सहयोगी बनती है बिहार के उसी दौर का ज़िक्र चला आता है. कई साल पहले लिखी कवि अरुण कमल की यह कविता आपको अभी के समय की कविता लगेगी. एंटी नेशनल कह कर विद्यार्थी , रिसर्च स्कॉलर , टीचर पिटे जा रहे हैं और सरकार पीटने वालों का साथ दे रही है . उनके मंत्री उनके साथ तस्वीर खिंचवाते हैं . इसलिए हाल के कुछ वर्षों में संस्कृति , राष्ट्रवाद को घटना जिस शैली में हुई है उन घटनायों में देखते हुए मुझे यह कहने में ज़रा भी हिचक नहीं है की जमींदारी और सामंती सोच वाले ये लोग राष्ट्रवाद और संस्कृति के नाम पर फिर से मारपीट कर रहे हैं .
एबीवीपी @ दिल्ली यूनिवर्सिटी
दिल्ली यूनिवर्सिटी में होने वाले छात्र संघ के चुनाव में एबीवीपी का अच्छी पकड़ है. उनके उम्मीदवार हाल के वर्षों में लगतार जीत रहे हैं . लेकिन इस बात पर भी गौर करें की क्यों एबीवीपी अपना उम्मीदवार पूर्वांचल या नार्थ ईस्ट का नहीं बनाता. इसके उम्मीदवार दिल्ली के आस पास के अगड़ी जातियों के होते हैं. इन्हें बिहार के विद्यार्थी में क्या राजनीति के गुण नहीं मिलते जो जाट या गुज्जर जाति का उम्मीदवार बनाते हैं. साफ़ शब्दों में यह पूरी तरह सामंती और अलोकतांत्रिक संगठन है .
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