मन कोई बर्तन नही है
मन कोई बर्तन नही है जिसे भरा जा सके
बल्कि एक ज्वाला है जिसे प्रज्जवलित किया जाना चाहिए ....
दार्शनिक प्लुटो का यह कथन “मन कोई बर्तन नही है
जिसे भरा जा सके बल्कि एक ज्वाला है जिसे प्रज्जवलित किया जाना चाहिए” , अगर देखे तो यह मात्र
कुछ शब्द हैं मगर इसके अर्थ का व्याख्या करे तो इसमें सारी समस्याओं के समाधान
का मार्ग दिखाता है।
मन जो सबसे तेज है एक क्षण वह
धरती के गहराई में है तो दूसरे क्षण आसमान के उंचाईयों पर विराजमान है ।कभी वह
धरती के एक क्षोर पर है तो अगले क्षण दूसरे क्षोर पर ।इसका कोई दायरा नही है कोई
सीमा नही है यह तो अथाह है अन्नत है ।यह कोई बर्तन नही है जिसे भरा जा सके , यह तो
ब्रह्माण्ड के जैसा असीम है ।कभी मन प्रसन्न है तो कभी उदास ,कभी हिमालय के जैसा
मजबूत है तो कभी उदास कभी बालू के भीत के जैसा कमजोर । इसमें ईषर्या है द्वेष है
उदासी है खुशी है प्रेम है घृणा है लोभ है । यह मन ही तो है तो जो संसार को चला
रहा है ।इसमें अन्नत शक्ति है । यह शक्ति जिसे हमेशा प्रज्जवलित किया जाना चाहिए ।
इस शक्ति को दुनिया को दुनिया के दुख दर्द समस्याओं को हल करने में किया जाना
चाहिए ।इसका इस्तेमाल जीवन को सरल बनाने में लगना चाहिए ।
संसार के समस्याओं से दूर अपने महल में गुजारने वाला
राजकुमार जब दुनियां के समस्या से अवगत होता है तो इस कदर क्षुब्ध होता है कि महल
छोड़ ज्ञान की तलाश में निकल पड़ता है दुनिया भर में । वर्षों अपने मन की साधना
लगाने से संसार की समस्याओं को हल करने का ज्ञान प्राप्त करता है और मध्यम मार्ग
अपनाने का संदेश देता है और गौतम बुद्ध कहलाता है । यह मन ही की शक्ति तो है जो
सोवियत संघ के भाग्य निर्माता लेनिन वर्षों के राजशाही पूंजीवादी को उखाड़ फेंकता
है और इस पृथ्वी ग्रह के सबसे बड़े भू-भाग पर दबे-कुचले मजदूर-किसान का राज कायम
करता है । यह मन ही तो है जो कृष्ण के प्रेम में मीरा ऐसी दीवानी हो जाती है विष
का प्याला भी अमृत समझ पी लेती है ।
तभी तो कवि रहीम कहते हैं
कि
रहिमन मनहिं लगाइके केखि लेहुँ किन कोय
नर को बस कर वो कहां , नारायण वश होय ।
अर्थात् मन लगा कोई मनुष्य
को वश में करने के साथ नारायण(देवता) को भी वश में कर सकता है ।इतनी होती है शक्ति
मन की ।
इंसान का बड़ा
और छोटा होना ,मन के अंदर की
ज्वाला पर निर्भर करता है। मन को अगर बर्तन के समान निराशा और आलस्य से भरोगे तो
सफलता अनिश्चित है वही दूसरी ओर मन को जोश और लगन रूपी ज्वाला से प्रज्जवलित करोगे
तो सफल होना निश्चित है। क्योंकि मन ही वह शक्ति है
जिसमें नेपोलियन जैसे विराट पुरूष से यह कहवाया कि असभंव मुर्खों की शब्दकोश का
शब्द है । संसार में हर चीज सभंव है और नेपोलियन ने अपने जीवन काल में कर के दिखा
दिया । तभी तो नेपोलियन ने अपने सेना के साथ आल्पस पर्वत पर चढ़ने जैसा अंसम्भव
कार्य कर दिखाया ।
मन हमेशा चंचल रहता है । मतलब की उसे किस दिशा में जाना है यह हमें ही
तय करना होता है। अगर मन रूपी शक्ति को वश में करना है तो खुद को
ध्यान केंद्रित बनाना पड़ता है । सूर्य की किरणें अलग-अलग होकर कोई प्रभाव पैदा
नही कर पाते पर अगर इन्हें केंद्रित कर दे तो ये उष्मा के बड़े स्त्रोत बन जाती
हैं जिसमें इतनी क्षमता होती है पूरे जंगल में आग लगा दे सकती हैं ।
मन को खाली रखने पर शैतान का वास होता है इसलिए मन में सुविचारों
का संचय, सृजनात्मक काम का उदय और
सकारात्मक सोच का रहना अतिआवश्यक है । साथ ही मनुष्य कठिन परिश्रम
और लगातार प्रयत्न के साथ एक लक्ष्य निश्चित कर और मन की ज्वाला को प्रज्वलित ,अपनी आंतरिक शक्ति को जगाकर लक्ष्य को हासिल करने
को अग्रसर रहे । जिस मन में ऐसी कामनाएँ जन्म लेती है वह व्यक्ति
समाज में आदर्श व्यक्ति की संज्ञा पाकर महापुरूष बन पाता है । मन में जब तक
विचारों की ज्वाला जागृत रहती है तबतक मनुष्य अपनी संज्ञा को सार्थक बना पाता है ।
*****
*****
Comments
Post a Comment