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मन कोई बर्तन नही है

मन कोई बर्तन नही है जिसे भरा जा सके       बल्कि एक ज्वाला है जिसे प्रज्जवलित किया जाना चाहिए .... दार्शनिक प्लुटो का यह कथन “ मन कोई बर्तन नही है जिसे भरा जा सके बल्कि एक ज्वाला है जिसे प्रज्जवलित किया जाना चाहिए ” , अगर देखे तो यह मात्र कुछ शब्द हैं मगर इसके अर्थ का व्याख्या करे तो इसमें सारी समस्याओं के समाधान का मार्ग दिखाता है।                    मन जो सबसे तेज है एक क्षण वह धरती के गहराई में है तो दूसरे क्षण आसमान के उंचाईयों पर विराजमान है ।कभी वह धरती के एक क्षोर पर है तो अगले क्षण दूसरे क्षोर पर ।इसका कोई दायरा नही है कोई सीमा नही है यह तो अथाह है अन्नत है ।यह कोई बर्तन नही है जिसे भरा जा सके , यह तो ब्रह्माण्ड के जैसा असीम है ।कभी मन प्रसन्न है तो कभी उदास ,कभी हिमालय के जैसा मजबूत है तो कभी उदास कभी बालू के भीत के जैसा कमजोर । इसमें ईषर्या है द्वेष है उदासी है खुशी है प्रेम है घृणा है लोभ है । यह मन ही तो है तो जो संसार को चला रहा है ।इसमें अन्नत शक्ति है । य...