लघु प्रेम कथा (लप्रेक) | मार्क्स और प्रेम
लघु प्रेम कथा (लप्रेक)
मार्क्स और प्रेम
ईश्वर में विश्वास नही था फिर भी ,रोज सुबह ही मंदिर पहुँच जाता वह । इंतजार करता मंदिर की सिढ़ियों पर उसके आने का , आते ही
चमक आ जाती उसके चेहरे पर , फिर साथ-साथ चढ़ते दोनों सिढ़ियाँ । आंखें मूंद ,
हाथ जोड़ पूरे भक्ति भाव से करती प्रार्थना मंदिर में स्थापित देवता से । और वह मंदिर के एक कोने में खड़ा हो, अपलक निहारता उस इंसान को जिसमें समाहित है उसकी आस्था । अभी उसके पॉकेट में हाथ डालो तो निकल आंएगे मार्क्स के दो-चार विचार । भले ही उसने चाट रखें हो मार्क्सवाद के पन्ने-पन्ने को पर वह भी नही जानता कि किस विचारधारा ने ले रखा है उसे इस वक्त आगोश में ।
दैनिक भास्कर (पटना संस्करण) में 06-04-2015 को प्रकाशित
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