लघु प्रेम कथा (लप्रेक) | मारे गए गुलफाम
लघु प्रेम कथा (लप्रेक)
मारे गए गुलफाम
बैलों को हांकता हुआ हिरामन अपनी तीसरी कसम
खा रहा है की कम्पनी की औरत को फिर कभी अपनी गाड़ी में नही बैठाएंगा । और
गुनगुनाता हुआ घर की तरफ निकल पड़ता है ‘अजी हाँ, मारे गए गुलफाम ....’। कहानी एक बार फिर समाप्त
हो जाती है और आंखे मूंद समर फिर बेतरतीब तरीके से पड़ जाता है बेड पर । पिछले
हफ्ते की ही बात है,
छोटी सी बात को लेकर झगड़ा हो गया था उसके साथ । झगड़ा इस कदर बढ़
गया की उसने ब्रेकअप कर लिया था समर के साथ । इसने भी तैश में आकर निकाल दी थी
सारी भड़ास उसके सामने ही । कह दिया था कि फिर नही देखेगा सूरत कभी उसकी । कहने को
तो कह दिया पर वह भी जानता था कि उसे भूलाना उसके लिए संभव नही , पर क्या करें खा चुका है कसम । तब से मायूस सा पड़ा ये पढ़ता रहता है एक
ही कहानी ‘मारे गए गुलफाम उर्फ तीसरी कसम’ । बीसियों बार पड़ चुका है एक ही कहनी , हर बार
कहानी के अंत होते ही बंधता जाता है अपने ही जुबां के बंधन में । पर अब और नही , निकलना
होगा उसे अपने मायूसी से। जाकर मना लेगा उसे , मांग लेगा
अपने गलती की माफी । निकल पड़ता है घर से यही सोचकर कि आज हिरामन भी होता तो शायद
तोड़ देता अपनी सारी कसमें ।
दैनिक भास्कर (पटना संस्करण) में 06-04-2015 को प्रकाशित
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