लघु प्रेम कथा (लप्रेक) | मार्क्स और प्रेम
लघु प्रेम कथा (लप्रेक) मार्क्स और प्रेम ईश्वर में विश्वास नही था फिर भी , रोज सुबह ही मंदिर पहुँच जाता वह । इंतजार करता मंदिर की सिढ़ियों पर उसके आने का , आते ही चमक आ जाती उसके चेहरे पर , फिर साथ - साथ चढ़ते दोनों सिढ़ियाँ । आंखें मूंद , हाथ जोड़ पूरे भक्ति भाव से करती प्रार्थना मंदिर में स्थापित देवता से । और वह मंदिर के एक कोने में खड़ा हो , अपलक निहारता उस इंसान को जिसमें समाहित है उसकी आस्था । अभी उसके पॉकेट में हाथ डालो तो निकल आंएगे मार्क्स के दो - चार विचार । भले ही उसने चाट रखें हो मार्क्सवाद के पन्ने - पन्ने को पर वह भी नही जानता कि किस विचारधारा ने ले रखा है उसे इस वक्त आगोश में । दैनिक ...