शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है... जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है
" शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है ।" ब शीर बद्र का यह शे'र हमेशा से चरितार्थ होते आया है । कभी हमारे जीवन में तो कभी आपके जीवन में । यह शे'र किसी सार्वभौमिक कथन की तरह सत्य है ,जिसे काटा नही जा सकता है । शोहरत और सफलता किसी की ग़ुलाम नही होती , यह अपना मालिक ख़ुद चुनती है । शोहरत कभी स्थिर नही रहती , यह कभी किसी के पास कम समय तक रहती है तो कभी अधिक समय तक , पर बदलती जरूर है । क्योंकि बदलते रहने से ही इसती महत्ता बरकरार रहती है । अगर यह किसी व्यक्ति की गुलाम हो जाए तो इसे पाने की चाह दूसरों में समाप्त हो जाएगी, और जब चाह समाप्त हो जाएगी तो महत्ता भी समाप्त हो जाएगी । इसलिए बदलते रहना इसकी फितरत है और जरूरत भी । मैं यह बात इसलिए कह रहा हूँ क्यों की वर्तमान भारतीय राजनीति में भारतीय जनता पार्टी को हराना लगभग ना मुमकिन हो गया था । 2014 में पार्टी को लोकसभा में 283 सीट आई थी और कांग्रेस महज 44 पर सिमट गयी थी। और इस जीत के हीरो रहे थे तब के पार्टी के प्रधानमंत्री के उम्मीदवार अब के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी । पार...